वेदांत उक्ति है की त्रेतायुग में सब ऋषि मुनि नग्न थे, तब उन्हें कपड़े की जरुरत हुई - प्रभु की इक्षा अनुसार देव आंगन संकर का रूप धारण कर कपड़े बनाने वाले कोष्टी जाती संसार मई पैदा हुए.
देव आंगन को ब्रम्हा की तीन लड़किया ब्याही गई.
१. कल्याण भोपाई !
२. ब्रम्ह बेनी !
३. अगनता !
देव आंगन की तीनो स्त्रियों से चार-चार पुत्र हुए, उन पुत्रो के नाम से उनका प्रकार बदल गया,
इस तरह से १२ लड़को से १२ प्रकार के कोष्टी संसार मे पैदा हुए !
वे क्रमशः इस प्रकार है!
१.कल्याण भोपाई के लड़के --> (1) हलवा
(2) भानागो
(3) लाड़
(4) गंगात्री
२. ब्रह्मबेनी के लड़के --> (1) निरही
(2) गढ़वाल
(3) साड़ी
(4) टिक्कास !
३. अगनता के लड़के --> (1) दक्खिनी
(2) टिक्कास(हटकर)साही
(3) लिंगयात
(4) पदम्साली
इनसे २ प्रकार के कोष्टी का जनम हुआ !
(1) बिना जनेव के !
(2) जनेव के !
बिना जनेव के कोष्टी --> हल्बा, लाड़ और गढ़वाल बिना जनेव के है !
जनेव वाले कोष्टी --> भानागो, गंगात्री, निराही, साड़ी, टिक्कास, दक्खिनी, टिक्कास साही(हटकर),
लिंगयात और पदम्साली जनेव पहेनते है ! और इनका आपस मे खाना- पीना होता है !
बिना जनिव के कोष्टी अधिकतर दक्षिण भारत मे - पूना, सतारा, मैसूर, मद्राश, बंगलोर, इलाके मे रहते है !
Tuesday, September 15, 2009
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